Saturday, June 20, 2020

International Day of Yoga Poster by Rajesh Nakar

“समत्वं योग उच्यते”(गीता २/४८) 
 सिद्धि एवं असिद्धि में सम-वृत्ति रखना ही योग है


BALANCE IN SUCCESS AND FAILURE IS CALLED YOGA.

1 comment:

  1. सनातन परम्परा में किसी भी विषय की व्याख्या तीन दृष्टिकोणों से की जा सकती है। मैं अपने ज्ञान से योग को इन तीनो दृष्टिकोणों द्वारा मोटे तौर से परिभाषित करने की कोशिश कर रहा हूँ-


    (१)आधिदैविक - स्वयं के आत्मा का परमात्मा से सुदृढ समन्वय स्थापित करना ही योग है।

    (२) आधिभौतिक- चराचर जगत् (अखिल ब्रह्माण्ड सहित) मे उपस्थित प्रत्येक अवयव का एक दूसरे से सुदृढ समन्वय स्थापित करना ही योग है।

    (३) आध्यात्मिक- चित्त के वृत्ति का निरोध ही योग है।

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